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छोटू !! एक अनंत नाम

meri awaaz
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आज छोटू बहुत खुश था । छोटू  यह उसका असली नाम नही था , उसका असली नाम तो कृष्णा था कृष्णा इसलिये क्योंकि वो बचपन में बिल्कुल कृष्ण जैसा दिखता था । आज वो खुश इसलिये था क्योंकि बहुत दिनो बाद घर जो जा रहा था। आज सुबह जल्दी सो कर उठ गया जल्दी- जल्दी तैयार हो गया क्योंकि उसके गाव कि पहली बस सुबह ही जाती थी , दूसरी बस शाम को जाती थी और वो अपना पूरा दिन खराब नहीं करना चाहता था । जल्दी- जल्दी अपना सामान अपने एक थैले में रखकर सेठ जगतमल के पैर छूकर और अपने इकट्ठे किये हुये सात सौ पचास रुपये लेकर बस अड्डे पर आकर खडा हो गया । वो समय से आधा घंटे पहले ही आ गया था । घर जाने की व्याकुलता उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी, वो चहलकदमी कर रहा था और कभी बस की दिशा की तरफ देख रहा था । वो अधीर हो रहा था , उसकी छटपटाहट उसके अपने हाथ मलने से साफ दिखाई दे रही थी । उसे समय का ज्ञान नही था । अंततः उसकी व्याकुलता को समाप्त करते हुये, सही समय पर उसके अपने गाव की बस उसके सामने खडी थी । यह वही बस जिसे वो रोज सुबह आते जाते देखता था और अपने गाव की कल्पना करता था, वही गाव  जिसमे उसका बचपन गुजरा था , बचपन………. बच्चा तो वो आज भी था लेकिन समय ने उसे पहले ही बडा कर दिया । बस मे बेठते ही वो अपने गंतव्य की ओर चल दी । बस के चलने के साथ छोटू की भावनाये उमडने लगी । उसे सब कुछ दिखाई देने लगा जिसे उसने भुला दिया था। वो पिता के कंधो पर बैठ कर घूमना, मां की गोद में बैठ कर रोटी खाना, वो इठ्लाना, भागना और मां का पीछे- पीछे भागना , मिठाई खिलाना । दीवाली के मेले मे उसे जो वो खिलौना नहिं मिला था कितना रोया था,शाम को ही पिता जी ने लाकर दिया तब जाकर चैन आया था। छोटू के होठो पर कभी मुस्कान थी तो कभी उसकी आंखे नम हो जाते थी । गाव मे बीता एक एक पल उसे याद आ रहा था । उसे आज भी अपने पिता का वो खून से सना हुआ चेहरा याद है , जो उसने आखिरी बार देखा था , तब वो पांच साल का था । सब कुछ बदल गया , घर की खुशहाली पिता के साथ चली गयी । अब घर मे वही एक मात्र पुरुष था । तभी टिकट ……… टिकट ………. की आवाज के साथ उसका ध्यान टूटा । वह गीली आंखो से उसकी तरफ देखने लगा , वह अपने गाव का नाम भूल चुका था । तभी पीछे से किसी ने परमानंद्पुर बोला । हां यहीं तो उसके गांव का नाम है, जिसमे उसका घर है, उसकी बूढी मां रहती है । मां , जिसे देखे हुये दो साल हो गये चिठी से कभी कभी बात हो जाती थी या गाव से आये किसी आदमी से मां का हाल चाल पूछ लेता था । गाव के सुंदर से ही मालूम पडा था की मां बीमार है और वो गाव की तरफ चल दिया । उसके हाथ मे उसका थैला था जिसमे एक नई साडी रखी थी , जो उसने अपनी मां के लिये ली थी । जिस मां के लिये वो गाव से शहर आया , कृष्णा से छोटू बना आज उसे उससे लडना है क्योंकि मां ने उसकी खबर नही ली । वो अपना बचपन खो चुका था, इस निष्ठुर समाज से उसे समय से पहले बडा कर दिया था । परमानंदपुर………………. परमानंदपुर……………. की आवाज के साथ उसका ध्यान टूटा । अरे उसका गाव आ चुका था । कृष्णा ने अपना थैला समेटा और अपने घर की ओर चल दिया वही पुरानी सड्क, वही गली, वही रम्मू का खेत , वही बाग जहां से कृष्णा अपने दोस्तों के साथ आम खाता था । जैसे-जैसे घर के पास पहुचता जा रहा था, उसकी धडकन बढ्ती जा रही थी, कदम खुशी से भारी होते जा रहे थे। एक – एक पल मुश्किल से गुजर रहा था। मां से मिलने की बेताबी साफ थी । कदम तेज होते जा रहे थे, आंखो मे नमी आती जा रही थी। सहसा  उसके कदम रूक गये, दिल जोरों से धडकनें लगा, हाथ मे लगा थैला छूट गया, घर के सामने यह भीड कैसी , क्या हुआ मां को । तेजी से घर की तरफ दौडने लगा , भीड को चीडते हुए अंदर प्रवेश करता है । मां जमीन पर लेटी हुई है, बिल्कुल शांत । न तो कृष्णा को देखकर उसकी आंखे खुली , न उसे देखकर मुस्करायी और न ही उसे गले लगाया । मां पिता जी के पास जा चुकी थी । कृष्णा शांत था, न हस रहा था , न रो रहा था , अब वो बडा  जो हो गया था । मां को छोड्कर , घर को छोडकर , सारी यादो को छोडकर कृष्णा  शहर आ गया। फिर वही से छोटू …….. पानी लाओ, छोटू …….. रोटी लाओ। छोटू …… बर्तन साफ करो की आवाजे आने लगी । अब गांव का कृष्णा शहर का छोटू बन चुका था। शहर मे न जाने कितने छोटू है सबकी एक ही कहानी है वो गांव……….., वो गलियां…………. , वो परिवार……………., मां…………, बचपन……………., प्यार……………, दुलार…………….. के अलावा शहर की गालियां और एक अनंत नाम ………………………………… छोटू।

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